Paintings by Theresa Paden |
वो ओस की आखिरी बूंद थी
वो लम्हों का ठहराव भी आखिरी था
कि फूल की आखिरी पंखुड़ी ने झड़ते हुए
जो कहा वो भी सूफियाना था
पल पल का हिसाब बखूबी रखती है कायनात
वो जो आखिरी दामन होता है ना
वो जो आखिरी सांस में घुलता है
वो जो तंतूरे सा झनझनाता है मन को
वो जो भूख में भी हंस लेता है
वो जो दर्द को पी जाता है बेसाख़्ता
वो आखिरी कुछ भी तो नहीं है बस
होती है शुरुआत... वहीं से शफ़क को जाने की
- अलकनंदा सिंह
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