जा रही थी वह बेखबर
पगडंडी छोटी और
तमन्नायें हज़ार
निर्द्वंद प्यार का तूफान सांसों में
थामे आंचल में कांटे बेशुमार
वो बांटती थी प्यार
वो खोजती थी प्यार
चाहती थी ठंडी छांव
किसी की सांसों से हर बार
बस एक कदम चला शहर की ओर
और...और...और...अब तो
झोपड़ी को महल भी बनाकर देखा
मगर मिला उसे बस
दुखती रगों का अंबार
जो चाहा था नि:स्वार्थ प्रेम
फिर देखा उसका रूप- विद्रूप
अंतस का स्वप्न
टूटा रहा है हर बार
क्यों अब भी बाकी है आशा
कि समेट ले उसके मन का भोजपत्र
कोई आकर जिस पर
टांका हुआ हो बस प्यार ही प्यार
- अलकनंदा सिंह
पगडंडी छोटी और
तमन्नायें हज़ार
निर्द्वंद प्यार का तूफान सांसों में
थामे आंचल में कांटे बेशुमार
वो बांटती थी प्यार
वो खोजती थी प्यार
चाहती थी ठंडी छांव
किसी की सांसों से हर बार
बस एक कदम चला शहर की ओर
और...और...और...अब तो
झोपड़ी को महल भी बनाकर देखा
मगर मिला उसे बस
दुखती रगों का अंबार
जो चाहा था नि:स्वार्थ प्रेम
फिर देखा उसका रूप- विद्रूप
अंतस का स्वप्न
टूटा रहा है हर बार
क्यों अब भी बाकी है आशा
कि समेट ले उसके मन का भोजपत्र
कोई आकर जिस पर
टांका हुआ हो बस प्यार ही प्यार
- अलकनंदा सिंह
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