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Sunday 7 April 2013

बार का संस्‍कार

प्रश्‍नों में घिरी है आस्‍था  आज
क्‍योंकि-
इस सूचनाई जमात में,
सभ्‍यता के सूरज को -
हथेली में छुपाकर,
ज्ञान को बाजार में
बदलने चली है
हमारी आपकी नई पीढ़ी ।

इसीलिए अपनों की
संवेदना को 'बार' में
और 'बार' को,
संस्‍कार में
घोलने चली है
हमारी आपकी नई पीढ़ी।
-अलकनंदा सिंह

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