बदायूं: मशहूर शायर फहमी बदायूंनी 86 साल की उम्र में दुनिया से रुख्सत कर गए, , उनकी शायरी सीधे दिल में उतरती थी, उन्होंने अपने हुनर से देश दुनिया में बदायूं का नाम रोशन किया.
'कितना महफूज हूं कोने में, कोई अड़चन नहीं है रोने में' जैसे कई बेहतरीन शायरी पेश करने वाले मशहूर शायर शेर खान उर्फ पुत्तन खां फहमी बदायूंनी दुनिया से रुख्सत हो गए. कस्बा बिसौली के रहने वाले जमा शेर खान उर्फ पुत्तन खां फहमी बदायूंनी का बीमारी के चलते रविवार को 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था.
वक़्त के साथ ग़ज़ल के भी मौसम बदलते रहते हैं, कुछ शोअरा उस मौसम के मुताबिक़ फ़स्लें पैदा करते हैं और कुछ उन फ़स्लों के लिए नई ज़मीनें तय्यार करते हैं। इक्कीसवीं सदी में फ़हमी बदायूनी साहब वही ज़मीन तय्यार कर रहे हैं जिनपर ग़ज़ल की नई फस्लें लहलहाऐंगी।
पढ़िये उनकी ये कुछ गज़लें-----
नमक की रोज़ मालिश कर रहे हैं
नमक की रोज़ मालिश कर रहे हैं
हमारे ज़ख़्म वर्ज़िश कर रहे हैं
सुनो लोगों को ये शक हो गया है
कि हम जीने की साज़िश कर रहे हैं
हमारी प्यास को रानी बना लें
कई दरिया ये कोशिश कर रहे हैं
मिरे सहरा से जो बादल उठे थे
किसी दरिया पे बारिश कर रहे हैं
ये सब पानी की ख़ाली बोतलें हैं
जिन्हें हम नज़्र-ए-आतिश कर रहे हैं
अभी चमके नहीं 'ग़ालिब' के जूते
अभी नक़्क़ाद पॉलिश कर रहे हैं
तिरी तस्वीर, पंखा, मेज़, मुफ़लर
मिरे कमरे में गर्दिश कर रहे हैं
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जब रेतीले हो जाते हैं
जब रेतीले हो जाते हैं
पर्वत टीले हो जाते हैं
तोड़े जाते हैं जो शीशे
वो नोकीले हो जाते हैं
बाग़ धुएँ में रहता है तो
फल ज़हरीले हो जाते हैं
नादारी में आग़ोशों के
बंधन ढीले हो जाते हैं
फूलों को सुर्ख़ी देने में
पत्ते पीले हो जाते हैं
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जाहिलों को सलाम करना है
जाहिलों को सलाम करना है
और फिर झूट-मूट डरना है
काश वो रास्ते में मिल जाए
मुझ को मुँह फेर कर गुज़रना है
पूछती है सदा-ए-बाल-ओ-पर
क्या ज़मीं पर नहीं उतरना है
सोचना कुछ नहीं हमें फ़िलहाल
उन से कोई भी बात करना है
भूक से डगमगा रहे हैं पाँव
और बाज़ार से गुज़रना है
- अलकनंदा सिंंह