फाग महोत्सव का प्रथम दिवस
(1)
सुरंग सेज प्यारे खेलैं होरी ।
दूलहू श्याम रंगीले खिलाड़ी,दुलहिन राधा रसीली गोरी ।।
मान लाज मुस्कन रंग गहरे , फबे मनुहार जुहार निहोरी ।
चोबा चुंबन मलय आलिंगन ,परिरंभन मलैं कुमकुम रोरी ।।
परसत भाये गुलाल अंबीर तन ,अंकौ भरैं नखसिख रसबोरी ।
कृष्णचंद्र राधा चरणदासि बलि,सुरति फाग दिन रंग रस जोरी ।।
(2)
श्याम श्यामा की छवि न्यारी ,होरी रंग खेलैं पिय प्यारी।
सौंज सजि सखी दुहूँ ओरी,भरहिं पिच रंग रूख जोरी ।१।
बीन ढफ तार बहु बाजैं , निरखि नृत अप्सरा लाजैं ।
चैती चाँचरि मधुर संगीत ,फगुवा सुनि मत्त झूमे मीत ।२।
सौहें नव कुँज फूले फूल,भँवर जस गूँजैं यमुना कूल ।
प्रिया भरी रंग पिचकारी,ओट करि ललिता अगारी।३।
ताक रंग लाल पै मारै , घात लै अरगजा डारै ।
लाल गुलाल भरि झोरी ,गुलचा संग छोड़े तकि गोरी ।४।
उमंगि दोऊ फाग रंग खेलैं , प्रेम सुख रंग रस झेलैं ।
रँगे रंग रँगी पहिचानें , कोऊ काहू कौं नहिं जानें ।५।
कुंज दुरे कृष्णचन्द्र प्यारी , सुरति सुख केलि नित न्यारी ।
भरीं भुज राधा बिहारी , नेह होरी की बलिहारी ।६।
फाग महोत्सव का द्वितीय दिवस
(1)
होरी कुँज महल खेलत हुलसि छबीली री ।
नैंन सैंन अंग चलत चटक रंग ,चितै चित रंगत रंगीली री ।१।
घेरा करत सौंज लियैं सखी चहुँ,बीच फबी गरबीली री ।
कोमल कर अरगजा पुहुप भरि,मारत रसिक रसीली री ।२।
पीत वसन मोहन घन दामिनि,सारी चोली नीली री ।
खेलत होरी पिय संग सोहत ,कछु सूखी कछु गीली री ।३।
तन मन रंग अनंग के छूटत , कंचुकी नीबी ढीली री ।
कृष्णचन्द्र राधा चरणदासि,निरखत सुख सुरति लजीली री ।४।
(2)
खेले प्यारी श्याम पिया संग होरी ।
सुघर वदन पिचकारी रूप रंग, रस माधुर्य कमोरी ।१।
नेेंन सैंन के अंबीर अरगजा, चलैं कटाक्षन झोरी ।
हंसत रंगीले गुलाल परैं दृग ,उमड़े मदन मन जोरी ।२।
परस परस्पर झागे रस सर , सुखद सुरति बरजोरी ।
कृष्णचन्द्र राधा चरणदासि दिन ,उर आनंद न ओरी ।३।
फाग महोत्सव का तृतीय दिवस
(1)
बना बनी रस रंग की खेलें होरी हो ।
नैंन सैंन की मार परत मन ,रंग अनंग की रेलें होरी हो ।१।
रूप माधुरी सिंधु भँवर परे ,रस तरंग की ठेलें होरी हो ।
विवस रंग रस सुधि न वसन तन ,अंग अंग की पेलें होरी हो ।२।
मिलि न मिलें मदमाते फाग के ,रसिया उमंग की हेलें होरी हो ।
कृष्ण चन्द्र राधा चरण दासि रचि,सेज सुरंग की केलें होरी हो ।३।
(2)
होरी हो कुँज महल मतवारी ।
गोरे श्याम साँवरी श्यामा ,ललिता जोरी विचित्र सिंगारी ।१।
गोरी सखीं बजावें गावे ,रंग गुलाल चलावें कारी ।
गोरी जस गावें दुलहिन के ,साँवरी दैं दूलहु बहु गारी ।२।
चोबा चंदन अबीर अरगजा ,केसर कुसुम रंग सुखकारी ।
जुरत कटाक्ष मूठि दृग मारत , खेलैं दंपति चतुर खिलारी ।३।
घात दाब बचें पकरें परस्पर, सबहिं रंगे रंग इकसारी ।
कृष्णचन्द्र राधा चरणदासि बलि,मधुर प्रेम रंग होरी न्यारी ।४।
(3)
होरी खेलौ करौ मनमानी ।
मोहन रसिक रूप रस लोभी ,मानिनी राधा सयानी ।१।
उन रंग प्रेम दोऊ कर लीनें ,तुव रंग मनहिं छिपानी ।
तुव उन रंगौ रंगैं वे तुमको ,दोउन प्रीती हौं जानी ।२।
नृत्य संगीत सुगंध राग रंग , रस सर सुरति समानी ।
तन मन जिय मिलि रंगे परस्पर, सकुचि गुमान गँवानी ।३।
सेवत होरी बसंत मदन नित ,वृंदावन रजधानी ।
कृष्णचन्द्र राधा चरण दासि होरी ,रसिक अनन्य रंगानी ।४।
स्वामी हरिदास की साधनास्थली टटिया स्थान स्वामी हरिदास सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ है। हरिदास सम्प्रदाय के आठ आचार्य हैं। सातवें आचार्य, स्वामी ललित किशोरी देव जी ने 1758 और 1823 के बीच इस धरती पर एक निर्जन वृक्ष के नीचे निवास किया, ताकि एकांत में ध्यान किया जा सके। उन्होंने बांस के डंडे का इस्तेमाल कर पूरे इलाके को घेर लिया। स्थानीय बोली में बाँस की छड़ियों को “टटिया” कहा जाता है। इस तरह इस स्थान का नाम टटिया स्थान पड़ा। उन्होंने उन्हें यह सुझाव भी दिया कि राधा अष्टमी के दिन श्री हरिदास जी का प्रकट दिवस मनाया जाना चाहिए और तब से यह त्योहार बहुत प्रेम से मनाया जाता है। टटिया स्थान पर उनकी समाधि भी है।
टटिया स्थान विभिन्न प्रकार के वृक्षों से भरा है, विशेष रूप से वे जो भगवान कृष्ण के दिल के करीब थे, जैसे, नीम, पीपल और कदंब। यह जगह साधना भक्ति करने की है, और किसी को भी यहाँ अनावश्यक बात करने की अनुमति नहीं है।
– अलकनंदा सिंंह