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Tuesday, 20 October 2020

‘सरस्वतीचंद्र’ रचने वाले गुजराती साहित्य के कथाकार गोवर्धनराम माधवराम त्रिपाठी

 


आधुनिक गुजराती साहित्य के कथाकार गोवर्धनराम माधवराम त्रिपाठी की आज 165वीं जयंती है। 20 अक्टूबर 1855 को जन्‍मे गोवर्धन राम की मृत्‍यु 01 अप्रेल 1907 को हुई। गोवर्धनराम कवि, चिंतक, विवेचक, चरित्र लेखक और इतिहासकार भी थे, हालांकि उन्‍हें प्रसिद्धि कथाकार के रूप में ही मिली।

जिस प्रकार आधुनिक गुजराती साहित्य की पुरानी पीढ़ी के अग्रणी ‘नर्मद’ माने जाते हैं, उसी प्रकार उनके बाद की पीढ़ी का नेतृत्व गोवर्धनराम के द्वारा हुआ। संस्कृत साहित्य के गंभीर अनुशीलन तथा रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद आदि विभूतियों के विचारों के प्रभाव से उनके हृदय में प्राचीन भारतीय आर्य संस्कृति के पुनरुत्थान की तीव्र भावना जाग्रत हुई। उनका अधिकांश रचनात्मक साहित्य मूलत: इसी भावना से संबद्ध एवं उद्भूत है।
‘सरस्वतीचंद्र’ उनकी सर्वप्रमुख साहित्यिक कृति है। कथा के क्षेत्र में इसे गुजराती साहित्य का सर्वोच्च कीर्तिशिखर कहा गया है। आचार्य आनंदशंकर बापूभाई ध्रुव ने इसकी गरिमा और भाव समृद्धि को लक्षित करते हुए इसे ‘सरस्वतीचंद्र पुराण’ की संज्ञा प्रदान की थी, जो इसकी लोकप्रियता तथा कल्पना बहुलता को देखते हुए सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होती है।
‘स्नेहामुद्रा’ गोवर्धनराम की ऊर्मिप्रधान भाव गीतियों का, संस्कृतनिष्ठ शैली में लिखित एक विशिष्ठ कविता संग्रह है जो सन 1889 में प्रकाशित हुआ था। इसमें समीक्षकों की मानवीय, आध्यात्मिक एवं प्रकृति परक प्रेम की अनेक प्रतिभा एक समर्थ काव्य विवेचक के रूप में प्रकट हुई है। विल्सन कॉलेज, साहित्य सभा के समक्ष प्रस्तुत अपने गवेषणपूर्ण अंग्रेज़ी व्याख्यानों के माध्यम से गोवर्धनराम जी ने प्राचीन गुजराती साहित्य के इतिहास को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने का प्रथम प्रयास किया। इनका प्रकाशन ‘क्लैसिकल पोएट्स ऑफ़ गुजरात ऐंड देयर इनफ्लुएंस ऑन सोयायटी ऐंड मॉरल्स’ नाम से हुआ है।
सन् 1905 में ‘गुजराती साहित्य परिषद’ के प्रमुख के रूप में दिये गए अपने भाषण में गोवर्धनराम ने आचार्य आनंदशंकर बापूभाई ध्रुव से प्राप्त सूत्र को पकड़कर नरसी मेहता के काल निर्णय की जो समस्या उठाई, उस पर इतना वादविवाद हुआ कि वह स्वयं ऐतिहासिक महत्व की वस्तु बन गई।
जीवनचरितलेखक के रूप में उनकी क्षमता "लीलावती जीवनकला" (ई. 1906) तथा "नवलग्रंथावलि (ई. 1891) के उपोदघात से अंकित की जाती है। लीलावती उनकी दिवगंता पुत्री थी और उसके चरितलेखन में तत्वचिंतन एवं धर्मदर्शन को प्रधानता देते हुए उन्होंने सूक्ष्म देह की गतिविधि को प्रस्तुत किया है। नवलराम की जीवनकथा की उपेक्षा इसमें आत्मीयता का तत्व अधिक है। नवलराम की जीवनकथा की अपेक्षा इसमें आत्मीयता का तत्व अधिक है। गोवर्धनराम ने अपनी जीवनी के संबंध में भी कुछ "नोट्स लिख छोड़े थे जो अब "स्केच बुक" के नाम से प्रकाशित हो चुके हैं।