मध्य प्रदेश के जिला बैतूल अंतर्गत गाँव जौलखेड़ा में 07 नवंबर को जन्मे प्रसिद्ध भारतीय कवि एवं साहित्यकार चंद्रकांत देवताले अपनी रचनाओं में सघन बुनावट और उनमें निहित राजनीतिक संवेदना के लिए जाने जाते हैं।
देश की 24 भाषाओं में विशेष साहित्यिक योगदान के लिए प्रख्यात साहित्यकारों में शामिल चंद्रकांत देवताले का देहावसान 14 अगस्त 2017 को हुआ.
उन्होंने अपनी कविता की कच्ची सामग्री मनुष्य के सुख दुःख, विशेषकर औरतों और बच्चों की दुनिया से इकट्ठी की थे. चूंकि बैतूल में हिंदी और मराठी बोली जाती है, इसलिए उनके काव्य संसार में यह दोनों भाषाएं जीवित थीं. मध्य भारत का वह हिस्सा जो महाराष्ट्र से छूता है, उसमें मराठी भाषा पहली या दूसरी भाषा के रूप में बोली जाती रही है. बैतूल भी ऐसी ही जगह है. अपने प्रिय कवि मुक्तिबोध की तरह देवताले मराठी से आंगन की भाषा की तरह बरताव करते थे. यह उनकी कविताओं में बार-बार देखा जा सकता है.
2012 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित ने कवि गजानन माधव मुक्तिबोध पर पीएचडी की थी और इंदौर के एक कॉलेज में पढ़ाते थे.
वह अपनी बात सीधे और मारक ढंग से कहते हैं। कविता की उनकी भाषा में अत्यंत पारदर्शिता और एक विरल संगीतात्मकता दिखाई देती है.
देवताले की कविताओं में जूता पॉलिश करते एक लड़के से लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति तक जगह पाते हैं. वे ‘दुनिया के सबसे गरीब आदमी’ से लेकर ‘बुद्ध के देश में बुश’ तक पर कविताएं लिखते थे लेकिन सुखद यह है कि कविता के इस पूरे फैलाव में कहीं भी उनके गुस्से में कमी नहीं आती. वे अपने गुस्से को सर्जनात्मक बनाकर उससे भूख का निवारण चाहते हैं.
देश की 24 भाषाओं में विशेष साहित्यिक योगदान के लिए प्रख्यात साहित्यकारों में शामिल चंद्रकांत देवताले का देहावसान 14 अगस्त 2017 को हुआ.
उन्होंने अपनी कविता की कच्ची सामग्री मनुष्य के सुख दुःख, विशेषकर औरतों और बच्चों की दुनिया से इकट्ठी की थे. चूंकि बैतूल में हिंदी और मराठी बोली जाती है, इसलिए उनके काव्य संसार में यह दोनों भाषाएं जीवित थीं. मध्य भारत का वह हिस्सा जो महाराष्ट्र से छूता है, उसमें मराठी भाषा पहली या दूसरी भाषा के रूप में बोली जाती रही है. बैतूल भी ऐसी ही जगह है. अपने प्रिय कवि मुक्तिबोध की तरह देवताले मराठी से आंगन की भाषा की तरह बरताव करते थे. यह उनकी कविताओं में बार-बार देखा जा सकता है.
2012 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित ने कवि गजानन माधव मुक्तिबोध पर पीएचडी की थी और इंदौर के एक कॉलेज में पढ़ाते थे.
वह अपनी बात सीधे और मारक ढंग से कहते हैं। कविता की उनकी भाषा में अत्यंत पारदर्शिता और एक विरल संगीतात्मकता दिखाई देती है.
देवताले की कविताओं में जूता पॉलिश करते एक लड़के से लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति तक जगह पाते हैं. वे ‘दुनिया के सबसे गरीब आदमी’ से लेकर ‘बुद्ध के देश में बुश’ तक पर कविताएं लिखते थे लेकिन सुखद यह है कि कविता के इस पूरे फैलाव में कहीं भी उनके गुस्से में कमी नहीं आती. वे अपने गुस्से को सर्जनात्मक बनाकर उससे भूख का निवारण चाहते हैं.
चंद्रकांत देवताले की 2 मशहूर कविताएं:
पत्थर की बैंच
जिस पर रोता हुआ बच्चा
बिस्कुट कुतरते चुप हो रहा है
जिस पर रोता हुआ बच्चा
बिस्कुट कुतरते चुप हो रहा है
जिस पर एक थका युवक
अपने कुचले हुए सपनों को सहला रहा है
अपने कुचले हुए सपनों को सहला रहा है
जिस पर हाथों से आंखे ढांप
एक रिटायर्ड बूढ़ा भर दोपहरी सो रहा है
एक रिटायर्ड बूढ़ा भर दोपहरी सो रहा है
जिस पर वे दोनों
जिन्दगी के सपने बुन रहे हैं
जिन्दगी के सपने बुन रहे हैं
पत्थर की बैंच
जिस पर अंकित है आंसू, थकान
विश्राम और प्रेम की स्मृतियां
जिस पर अंकित है आंसू, थकान
विश्राम और प्रेम की स्मृतियां
इस पत्थर की बैंच के लिए भी
शुरु हो सकता है किसी दिन
हत्याओं का सिलसिला
इसे उखाड़ कर ले जाया
अथवा तोड़ा भी जा सकता है
पता नहीं सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा
इस पत्थर की बैंच पर!
शुरु हो सकता है किसी दिन
हत्याओं का सिलसिला
इसे उखाड़ कर ले जाया
अथवा तोड़ा भी जा सकता है
पता नहीं सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा
इस पत्थर की बैंच पर!
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मेरे होने के प्रगाढ़ अँधेरे को
पता नहीं कैसे जगमगा देती हो तुम
अपने देखने भर के करिश्मे से
पता नहीं कैसे जगमगा देती हो तुम
अपने देखने भर के करिश्मे से
कुछ तो है तुम्हारे भीतर
जिससे अपने बियाबान सन्नाटे को
तुम सितार-सा बजा लेती हो समुद्र की छाती में
जिससे अपने बियाबान सन्नाटे को
तुम सितार-सा बजा लेती हो समुद्र की छाती में
अपने असंभव आकाश में
तुम आज़ाद चिड़िया की तरह खेल रही हो
उसकी आवाज़ की परछाई के साथ
जो लगभग गूँगा है
और मै कविता के बंदरगाह पर खड़ा
आँखे खोल रहा हूँ गहरी धुंध में
तुम आज़ाद चिड़िया की तरह खेल रही हो
उसकी आवाज़ की परछाई के साथ
जो लगभग गूँगा है
और मै कविता के बंदरगाह पर खड़ा
आँखे खोल रहा हूँ गहरी धुंध में
लगता है काल्पनिक ख़ुशी का भी
अंत हो चुका है
पता नहीं कहाँ किस चट्टान पर बैठी
तुम फूलों को नोच रही हो
मै यहाँ दुःख की सूखी आँखों पर
पानी के छींटें मार रहा हूँ
अंत हो चुका है
पता नहीं कहाँ किस चट्टान पर बैठी
तुम फूलों को नोच रही हो
मै यहाँ दुःख की सूखी आँखों पर
पानी के छींटें मार रहा हूँ
हमारे बीच तितलियों का अभेद्य पर्दा है शायद
जो भी हो
उड़ रहा हूँ तुम्हारी खनकती आवाज़ के
समुन्दर पर
हंस ध्वनि की तन की तरंगों के साथ
जुगलबंदी कर रहे हैं
मेरे फड़फड़ाते होंठ
उड़ रहा हूँ तुम्हारी खनकती आवाज़ के
समुन्दर पर
हंस ध्वनि की तन की तरंगों के साथ
जुगलबंदी कर रहे हैं
मेरे फड़फड़ाते होंठ
याद है न जितनी बार पैदा हुआ
तुम्हें मैंने बैजनी कमल कहकर पुकारा
और अब भी अकेलेपन की पहाड़ से उतरकर
मैं आऊँगा हमारी परछाइयों के ख़ुशबूदार
गाते हुए दरख़्त के पास
तुम्हें मैंने बैजनी कमल कहकर पुकारा
और अब भी अकेलेपन की पहाड़ से उतरकर
मैं आऊँगा हमारी परछाइयों के ख़ुशबूदार
गाते हुए दरख़्त के पास
मैं आता रहूँगा उजली रातों में
चन्द्रमा को गिटार-सा बजाऊँगा
तुम्हारे लिए
चन्द्रमा को गिटार-सा बजाऊँगा
तुम्हारे लिए
-Legend News