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Friday, 31 August 2018

जब अमृता केे दिल और कलम से निकला- इमरोज़... ''मैं तैनूं फिर मिलांगी''

आज मेरी पसंदीदा लेखिका अमृता प्रीतम का जन्‍मदिन है और आज ही मेरी बेटी का भी, ये इत्‍तिफाक भी हो सकता है और इच्‍छित कामना भी... अमृता को आजीवन असंतुष्‍ट प्रेमिका, रूह तक लेखनी को ले जाने वाली लेखिका के तौर पर जाना जाता है  मगर जो भी उन्‍हें पढता है वह स्‍वयं को अमृता की जगह ना रखे और उनकी तरह ना सोचे ,ऐसा होता नहीं...यानि हम उन्‍हें पढ़ते हुए उन जैसे ही होने लगते हैं...यही है अमृता के शब्‍दों की खूबी। आज उनके जन्‍मदिन पर उनकी कुछ कविताऐं साझा कर रही हूं। 
अमृता ने ‘मैं तैनूं फिर मिलांगी’ नज़्म इमरोज़ के लिए लिखी थी और पेशे से पेंटर इमरोज़ ने भी कई नज़्में अमृता के नाम लिख दीं। अमृता की किताब ‘रसीदी टिकट’ इसे साफ़गोई से बयान करती है। अमृता और साहिर के बीच एक कोरे काग़ज़ का रिश्ता था। मसलन एक बार जब प्रेस रिपोर्टर अमृता की तस्वीर ले रहे थे तब वह काग़ज़ पर कुछ लिख रहीं थीं। काग़ज़ उठाकर देखा तो वह बार-बार साहिर लिख रहीं थीं। उन्हें लगा कि अगले दिन इस काग़ज़ की तस्वीर अख़बार में छपेगी लेकिन वह काग़ज़ तस्वीर में कोरी दिखाई दे रही थी। 
पेश हैं इमरोज की अमृता के लिए लिखीं कुछ नज़्में…

घोंसला घर
अब ये घोंसला घर चालीस साल का हो चुका है
तुम भी अब उड़ने की तैयारी में हो
इस घोंसला घर का तिनका-तिनका
जैसे तुम्हारे आने पर सदा
तुम्हारा स्वागत करता था
वैसे ही इस उड़ान को
इस जाने को भी
इस घर का तिनका-तिनका
तुम्हें अलविदा कहेगा।
लोग कह रहे हैं
लोग कह रहे हैं उसके जाने के बाद
तू उदास और अकेला रह गया होगा
मुझे कभी वक़्त ही नही मिला
ना उदास होने का ना अकेले होने का ..
वह अब भी मिलती है
सुबह बन कर शाम बन कर
और अक्सर नज़मे बन कर
हम कितनी देर एक दूजे को देखते रहे हैं
और मिलकर अपनी अपनी नज़मे ज़िंदगी को सुनाते रहे हैं
एक ज़माने से
एक ज़माने से
तेरी ज़िंदगी का पेड़ कविता
फूलता फलता और फैलता
तुम्हारे साथ मिल कर देखा है
और जब तेरी ज़िंदगी के पेड़ ने
बीज बनाना शुरू किया
मेरे अंदर जैसे कविता की
पत्तियाँ फूटने लगी हैं.
-अलकनंदा सिंह

Wednesday, 29 August 2018

कृष्ण की कविताएं लिखने वाले बांग्ला कवि नजरूल की पुण्‍यतिथि पर विशेष

बांग्ला के प्रसिद्ध कवि काजी नजरूल इस्लाम का जन्म 24 मई 1899 को हुआ था। निधन 29 अगस्त 1976 को हुआ। भगवान कृष्ण पर उनकी 5 प्रसिद्ध रचनाएं उनकी पुण्यतिथि पर काव्य के पाठकों के लिए…
अगर तुम राधा होते श्याम।
मेरी तरह बस आठों पहर तुम,
रटते श्याम का नाम।।
वन-फूल की माला निराली
वन जाति नागन काली
कृष्ण प्रेम की भीख मांगने
आते लाख जनम।
तुम, आते इस बृजधाम।।
चुपके चुपके तुमरे हिरदय में
बसता बंसीवाला;
और, धीरे धारे उसकी धुन से
बढ़ती मन की ज्वाला।
पनघट में नैन बिछाए तुम,
रहते आस लगाए
और, काले के संग प्रीत लगाकर
हो जाते बदनाम।।
सुनो मोहन नुपूर गूँजत है…
आज बन-उपवन में चंचल मेरे मन में
मोहन मुरलीधारी कुंज कुंज फिरे श्याम
सुनो मोहन नुपूर गूँजत है
बाजे मुरली बोले राधा नाम
कुंज कुंज फिरे श्याम
बोले बाँसुरी आओ श्याम-पियारी,
ढुँढ़त है श्याम-बिहारी,
बनमाला सब चंचल उड़ावे अंचल,
कोयल सखी गावे साथ गुणधाम कुंज कुंज श्याम
फूल कली भोले घुँघट खोले
पिया के मिलन कि प्रेम की बोली बोले,
पवन पिया लेके सुन्दर सौरभ,
हँसत यमुना सखी दिवस-याम कुंज कुंज फिरे श्याम
सुनाओ सुमधूर नुपूर गुंजन….
कृष्ण कन्हईया आयो मन में मोहन मुरली बजाओ।
कान्ति अनुपम नील पद्मसम सुन्दर रूप दिखाओ।
सुनाओ सुमधूर नुपूर गुंजन
“राधा, राधा” करि फिर फिर वन वन
प्रेम-कुंज में फूलसेज पर मोहन रास रचाओ;
मोहन मुरली बजाओ।
राधा नाम लिखे अंग अंग में,
वृन्दावन में फिरो गोपी-संग में,
पहरो गले वनफूल की माला प्रेम का गीत सुनाओ,
मोहन मुरली बजाओ।
श्रवण-आनन्द बिछुआ की छंद रुनझुन बोले…
चंचल सुन्दर नन्दकुमार गोपी चितचोर प्रेम मनोहर नवल किशोर।
बाजतही मन में बाणरि की झंकार, नन्दकुमार नन्दकुमार नन्दकुमार।।
श्रवण-आनन्द बिछुआ की छंद रुनझुन बोले
नन्द के अंगना में नन्दन चन्द्रमा गोपाल बन झूमत डोले
डगमग डोले, रंगा पाव बोले लघू होके बिराट धरती का भार।
नन्दकुमार नन्दकुमार नन्दकुमार।।
रूप नेहारने आए लख छिप देवता
कोइ गोप गोपी बना कोइ वृक्ष लता।
नदी हो बहे लागे आनन्द के आँसू यमुना जल सुँ
प्रणता प्रकृति निराला सजाए, पूजा करनेको फूल ले आए बनडार।
नन्दकुमार नन्दकुमार नन्दकुमार।।
तुम्हारी मुरली बाजे धीर…
तुम प्रेम के घनश्याम मै प्रेम की श्याम-प्यारी।
प्रेम का गान तुम्हारे दान मै हूँ प्रेम भीखारी।।
हृदय बीच में यमुना तीर-
तुम्हारी मुरली बाजे धीर
नयन नीर की बहत यमुना प्रेम से मतवारी।।
युग युग होये तुम्हारी लीला मेरे हृदय बन में,
तुम्हारे मोहन-मन्दिर पिया मेहत मेरे मन में।
प्रेम-नदी नीर नित बहती जाय,
तुम्हारे चरण को काँहू ना पाय,
रोये श्याम-प्यारी साथ बृजनारी आओ मुरलीधारी।।
-Legend News

Thursday, 23 August 2018

कृष्‍ण को वीर रस में प्रस्‍तुत करने वाले शायर थे हफीज़ जालंधरी

भारत पाकिस्‍तान के बीच रिश्तों में तल्ख़ी के साथ साथ अभी भी कहीं ना कहीं कोई ना कोई कड़ी जुड़ती हुई दिखाई दे ही जाती है, ऐसी ही एक कड़ी थे हफीज जालंधरी साहब। हालांकि आज ना तो उनका जन्‍म दिन है और ना ही पुण्‍यतिथि परंतु ''अभी तो मैं जवान हूं'' सुन रही थी तो सोचा क्‍यों ना हफीज साहब केे बारे में मैंने जो कुछ पढ़ा उसे साझाा करूं। खासकर उनका लिखा हुआ कृष्‍णगीत।

हफ़ीज़ जालंधरी का पूरा नाम अबू अल-असर हफ़ीज़ जालंधरी था, इनका जन्म 14 जनवरी 1900 में पंजाब के जालंधर में हुआ था। 1947 में भारत के विभाजन के बाद वह लाहौर, पाकिस्तान में जाकर रहने लगे। पाकिस्ताान का कौमी तराना लिखने वाले इस शायर की जड़ें भारत की माटी और संस्कृति से बहुत गहरे जुड़ी हैं। हफ़ीज़ ने लिखा है, "मेरा खानदान तक़रीबन 200 बरस पहले चौहान राजपूत कहलाता था। मेरे बुज़ुर्ग हिन्दू से मुसलमान हो गये और बदले में अपनी जायदाद वग़ैरह खो बैठे। हां, सूरजबंसी होने का ग़ुरूर मुसलमान होने के बावजूद साथ रहा, मेरी ज़ात तक पहुंचा और ख़त्म हो गया।" 

पाकिस्तान का राष्ट्रगान 'पाक सरज़मीं' लिखने वाले प्रख्यात शायर हफ़ीज़ जालंधरी ने लिखा और अगस्त 1954 में पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर इस गीत को अपना राष्ट्रगान घोषित कर दिया था। कौमी तराना लिखने वाले शायर हफ़ीज़ की चर्चा कॉमी तराना से अधिक ‘कृष्ण गीत' लिखने वाले शायर के रूप में अधिक होती आई है।
खालिस हिंदुस्तानी जुबां में लिखी गई ''कृष्ण कन्हैया'' नज्म भक्तिकाल के कवियों की याद दिलाती है लेकिन हफीज को कृष्ण में बस श्रृंगार रस नहीं दिखता था। हफीज को उम्मीद थी कि श्याम आएंगे और उबार लेंगे। सवाल उठता है किस चीज से उबारेंगे कृष्ण? इस सवाल का एक मुमकिन जवाब तो यही है कि हफीज ने कृष्ण की भक्ति को हिंदुस्तान के प्रति अपनी मुहब्बत का लॉन्चपैड बनाया। जिस दौर में हफीज ने ये कविता लिखी, तब पाकिस्तान नहीं बना था। हिंदुस्तान गुलाम था और हफीज ने इस कविता में उम्मीद जताई कि जिस तरह महाभारत में कृष्ण ने सत्य को जीत दिलाई, वैसा ही करिश्मा वो फिर से दोहराएंगे। हफीज को उम्मीद थी कि अंग्रेजों से आजादी हासिल करने की लड़ाई में भी कृष्ण मददगार साबित होंगे।

हफीज के कृष्ण श्रृंगार रस के नहीं बल्‍कि वीर रस के प्रतीक हैं। भगवान कृष्‍ण से हफीज कह रहे हैं-

‘बेकस की रहे लाज,
आ जा मेरे काले,
भारत के उजाले ,
दामन में छुपा ले’.

यूं तो किसी भी भक्त की आरजू भगवान से मिलने की ख्वाहिश पर खत्म होती है, उसके आगे और उससे बड़ी किसी मुराद की कल्पना भक्त नहीं कर पाता है। हफीज ने भी यही कहा- लिखते हैं,
‘लौ तुझ से लगी है,
हसरत ही यही है,
ऐ हिन्द के राजा,
इक बार फिर आ जा,
दुख दर्द मिटा जा’।

तो ऐसे हैं हफीज जालंधरी के बोल जो आज भी उतने ही मौजूं हैं जितने तब थे।

"अभी तो मैं जवान हूं" हफ़ीज़ जालंधरी की ये नज़्म Mallika Pukhraj की जादुई आवाज़ में आपने ज़रूर सुनी होगी। इस नज़्म को नूरजहाँ ने भी अपनी ख़ूबसूरत आवाज़ दी है।
आज़ादी से पहले के दौर में  ये गजल हफ़ीज़ जालंधरी ने लिखी थी, वे शायद सबसे अधिक लोकप्रिय शायर थे, जिनकी नज़्में और ग़ज़लें साहित्य-प्रेमियों की ज़ुबान पर चढ़ी हुई थी -


हवा भी ख़ुश-गवार है

गुलों पे भी निखार है

तरन्नुम-ए-हज़ार है

बहार पुर-बहार है

कहाँ चला है साक़िया

इधर तो लौट इधर तो आ

पिलाए जा पिलाए जा

अभी तो मैं जवान हूं ।



इक बार फिर वतन में गया जा के आ गया

लख़्त-ए-जिगर को ख़ाक में दफ़ना के आ गया

हर हम-सफ़र पे ख़िज़्र का धोका हुआ मुझे

आब-ए-बक़ा की राह से कतरा के आ गया

अभी तो मैं जवान हूं ।

तो आप भी सुनिए ''अभी तो मैं जवान हूं'' मल्‍लिका पुखराज की आवाज़ में------

https://www.youtube.com/watch?v=CXlSUXBTDUs

- अलकनंदा सिंह


Friday, 3 August 2018

सोहर, चैती और होली गाकर हमें झुमाने वाले पं. छन्नूलाल मिश्र

वाराणसी। सोहर, चैती और होली खासकर 

वाराणसी। सोहर, चैती और होली खासकर ”खेलें मसाने में होली दिगंबर..खेले मसाने में होली..” को अपने सुरों में ढालने वाले और पूरब अंग की गायिकी के पहचान पं. छन्नूलाल मिश्र के किसे झूमने पर विवश न कर दें। आज पंडित जी का जन्‍म दिन है।

पंडित छन्नूलाल मिश्र का जन्म ३ अगस्त १९३६ को हुआ था। ठुमरी के लब्धप्रतिष्ठ गायक हैं। वे किराना घराना और बनारस गायकी के मुख्‍य गायक हैं। उन्‍हें खयाल, ठुमरी, भजन, दादरा, कजरी और चैती के लिए जाना जाता है।

मौसम कोई भी हो जब भी इस होरी के सुर-शब्द कानों से टकराते हैं, काशी की धरती पर सैकड़ों फागुन झूम कर उतर आते हैं। आपनी मर्जी की मालिक प्रकृति को भी प्रकृति बदलने को मजबूर कर देने वाले सुरीले शहर बनारस का यह रुआब है सुरों के सम्राट पं. छन्नूलाल मिश्र के दम से जो आज बनारस की आन-बान के अलमबरदार हैं। पूरब अंग की गायिकी के लालकिला हैं, शोहरत के कुतुबमीनार हैं।

छन्‍नूलाल मिश्र की चैती यहां सुनिए- 
https://www.youtube.com/watch?v=dkM_T9RBol8&feature=youtu.be


लगभग आठ दशकों की जीवन यात्रा में पंडित जी ने अपनी साधना को उस मुकाम तक पहुंचाया है जहां पहुंचकर उनके वजूद और उनकी साधना की अलग-अलग पहचान कर पाना असंभव है।

ठुमरी के लब्धप्रतिष्ठ गायक हैं। वे किराना घराना और बनारस गायकी के मुख्य गायक हैं। उन्हें खयाल, ठुमरी, भजन, दादरा, कजरी और चैती के लिए जाना जाता है। पंडित छन्नूलाल मिश्र का जन्म तीन अगस्त, 1936 को आजमगढ़ के हरिहपुर में हुआ था। वाराणसी इन दिनों छोटी गैबी में इनका निवास है। छह साल की उम्र में पिता बद्री प्रसाद मिश्र ने संगीत के क्षेत्र में डाला था। उन्होंने संगीत के लिए चार मत बताए। शिवमत, भरत मत, नारद मत एवं हनुमान मत को शिव मंत्रों के साथ जोड़कर देखा। संगीत का उद्भव भगवान से हुआ। जिसे किसी घराना में न बांधकर उसे ईश्वर प्राप्ति के मार्ग के रूप में जान सकते है।

नौ साल की उम्र में पहले गुरु गनी अली साहब ने खयाल सिखाया। स्वर, लय और शब्द का समावेश ही संगीत है। इसकी उत्पत्ति भगवान शिव की चरणों से हुई। देश का पहला लोकसंगीत सोहर और निर्गुण के रूप में देखा। जन्म से लेकर मृत्यु तक संगीत है। अमेरिका का 50वां स्मृति सोमिओ सेलिब्रेशन, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई सहित कई स्थानों पर दी गई प्रस्तुति और पुरस्कार की यादें संजोए हुए है।

पद्मभूषण पं. छन्नूलाल मिश्र के मुताबिक अब तो ठुमकते हुए बोलों का उपयोग हो तो वह है ठुमरी। ठुमरी दो प्रकार की है गत भाव और भाव नृत्य। ठुमरी में मधुरता जरूरी है। अब तो पब्लिक को जो अच्छा लगे उसको गाना चाहिए। संगीत का सिरा आज इसलिए छूट रहा क्योंकि आजकल शिष्यों में धैर्य नहीं। थोड़ा गाकर खुद बड़ा समझने लगते हैं। जिनके पास समय नहीं वह खुद को कलाकार नहीं कलाबाज कहें। मोक्ष नहीं धन प्राप्ति का साधन बन रहा संगीत। अब तो ठुमकते हुए बोलों का उपयोग हो तो वह है ठुमरी। ठुमरी दो प्रकार की है गत भाव और भाव नृत्य। ठुमरी में मधुरता जरूरी है। अब तो पब्लिक को जो अच्छा लगे उसको गाना चाहिए। संगीत का सिरा आज इसलिए छूट रहा क्योंकि आजकल शिष्यों में धैर्य नहीं। थोड़ा गाकर खुद बड़ा समझने लगते हैं। जिनके पास समय नहीं वह खुद को कलाकार नहीं कलाबाज कहें। मोक्ष नहीं धन प्राप्ति का साधन बन रहा संगीत।

भारतीय संगीत-संस्कृति की जीवित किंवदंती, बनारस की कालातीत आनंदधारा के जीवंत द्वीप, अनेक अकिंचनो के स्नेहस्रोत स्वर-गंधर्व पूज्य पंडित छन्नूलाल मिश्र जी को जन्मदिवस की असीम शुभकामनायें।

-अलकनंदा सिंह

Wednesday, 1 August 2018

हँसी थमी है इन आँखों में यूँ नमी की तरह

क्‍या हम भी उनके दर्द को महसूस कर सकते हैं, जी हां आज ट्रेजडी क्‍वीन मीना कुमारी का जन्‍मदिन है

आज ट्रेजडी क्‍वीन मीना कुमारी का जन्‍मदिन है। इस अवसर पर अमिताभ बच्‍चन का कहा याद आता है कि हर डायलॉग को मीना कुमारी बोलती नहीं थीं बल्‍कि जीती थीं और दर्द को शबद में जीने वाली अदाकारा थीं। यह सच है कि आज भी उनकी फिल्‍म को हम फिल्‍म की तरह नहीं जीवन की तरह देखते हैं।

पढ़िए उनकी एक खास ग़ज़ल

हँसी थमी है इन आँखों में यूँ नमी की तरह 
चमक उठे हैं अंधेरे भी रौशनी की तरह 

तुम्हारा नाम है या आसमान नज़रों में 
सिमट गया मेरी गुम-गश्ता ज़िंदगी की तरह 

कोहर है धुँद धुआँ है वो जिस की शक्ल नहीं 
कि दिल ये रूह से लिपटा है अजनबी की तरह 

तुम्हारे हाथों की सरहद को पा के ठहरी हुईं 
ख़लाएँ ज़िंदा रगों में हैं सनसनी की तरह 

बॉलीवुड में ट्रेजडी क्वीन के नाम से मशहूर लिजेंडरी एक्ट्रेस मीना कुमारी की आज 85वां बर्थडे है। गूगल ने उनकी याद में आज बहुत ही खूबसूरत और शानदार डूडल बनाकर मीना कुमारी को याद किया है। 1 अगस्त, 1933 को को महजबीं बानो के रूप में जन्मीं इस अदाकारा ने बॉलीवुड में मीना कुमारी के नाम से पहचान बनाई।

गूगल ने मीना कुमारी के डूडल में एक्ट्रेस को आसमान में टिमटिमाते तारों के बीच अपनी चांदनी बिखेरते हुए दिखाया है। लाल साड़ी में मीना कुमारी इस डूडल में बहुत खूबसूरत लग रही हैं। बॉलीवुड में तीन दशक तक अपनी अदाकारी से सब का दिल जीतने वाली मीना कुमारी की पर्सनल लाइफ में काफी दुख रहा है। उनकी जीवन की यही पीड़ा उनकी फिल्मों में उनके अभिनय के जरिए सभी के सामने आई। मीना कुमारी ने साहिब, बीबी और गुलाम, परिणीता, फूल और पत्थर, दिल एक मंदिर, काजल और पाकीजा जैसी फिल्मों में अभिनय करके खुद को हमेशा के अमर बना दिया। दर्शकों के दिल में मीना कुमारी ने अपनी एक खास जगह बनाई है।

बेस्ट एक्ट्रेस कैटिगरी में एकसाथ चार फिल्मफेयर अवॉर्ड्स जीते

मीना कुमारी बेस्ट एक्ट्रेस कैटिगरी में चार फिल्मफेयर अवॉर्ड्स जीते थे। साल 1963 में हुए 10वें फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में बेस्ट एक्ट्रेस के सभी नॉमिनेशन पाकर उन्होंने इतिहास रच दिया था।

मीना कुमारी का जन्म इकबाल बेगम और अली बक्श की तीसरी बेटी के रूप में हुआ था। खबरों की मानें तो  जब मीना कुमारी का जन्म हुआ तो उनके माता-पिता के पास अस्पताल की फीस भरने के लिए पैसे तक नहीं थे। चार साल की उम्र में मीना कुमारी ने चाइल्ड एक्टर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था। मीना कुमारी ने 1939 में फिल्म 'लैदरफेस' में बेबी महजबीं का रोल प्ले किया था। मीना कुमारी ने अपने 33 साल के करियर में करीब 92 फिल्मों में काम किया था।

मीना कुमारी ने फिल्म मेकर कमाल अमरोही से 1852 में निकाह किया था। 31 मार्च 1972 में सिर्फ 38 साल की उम्र में मीना कुमारी इस दुनिया को अलविदा कह के हमेशा के लिए चली गईं।

- अलकनंदा सिंह