भावों के विशाल पर्वत पर, उगती
खिलती आकाश बेल चढ़ती-
कुछ हकीकतें और कुछ आस्था,
का मेल होती है मित्रता।
तय परिधियों के अरण्य में
ब्रह्म कमल सी एक बार खिलती
मन-सुगंध को अपनी नाभि में
समेटने का खेल होती है मित्रता।
स्त्री- पुरुष, पुरुष -स्त्री, स्त्री-स्त्री, पुरुष- पुरुष,
के सारे विभेद नापती,
अविश्वास से परे चलकर
'वेबलेंथ' का खेल होती है मित्रता
ये तेरा-मेरा, तुझमें-मुझमें,
अलग कहां, ये तो आत्मा से निकले,
रंगों से खेलती, उन्हें धूल में मिलाकर,
एक तस्वीर का शून्य उकेरती है मित्रता।
ये बंधन है पर खुला हुआ,
जो स्वतंत्रता की रक्षा में,
देह की देहरियों के पार आत्मा की,
आवाज की बात होती है मित्रता।
अपने मूल अर्थ और दृढ़ता के साथ,
समय की हथेलियों पर चलकर,
एक स्वयं से दूसरे स्वयं तक की यात्रा,
असीम यात्रा की मानिंद होती है मित्रता
ये मित्रता है...ये ही मित्रता है...हमारी,
हमारी जीभ पर घुलती सी होती है मित्रता ।
- अलकनंदा सिंह
खिलती आकाश बेल चढ़ती-
कुछ हकीकतें और कुछ आस्था,
का मेल होती है मित्रता।
तय परिधियों के अरण्य में
ब्रह्म कमल सी एक बार खिलती
मन-सुगंध को अपनी नाभि में
समेटने का खेल होती है मित्रता।
स्त्री- पुरुष, पुरुष -स्त्री, स्त्री-स्त्री, पुरुष- पुरुष,
के सारे विभेद नापती,
अविश्वास से परे चलकर
'वेबलेंथ' का खेल होती है मित्रता
ये तेरा-मेरा, तुझमें-मुझमें,
अलग कहां, ये तो आत्मा से निकले,
रंगों से खेलती, उन्हें धूल में मिलाकर,
एक तस्वीर का शून्य उकेरती है मित्रता।
ये बंधन है पर खुला हुआ,
जो स्वतंत्रता की रक्षा में,
देह की देहरियों के पार आत्मा की,
आवाज की बात होती है मित्रता।
अपने मूल अर्थ और दृढ़ता के साथ,
समय की हथेलियों पर चलकर,
एक स्वयं से दूसरे स्वयं तक की यात्रा,
असीम यात्रा की मानिंद होती है मित्रता
ये मित्रता है...ये ही मित्रता है...हमारी,
हमारी जीभ पर घुलती सी होती है मित्रता ।
- अलकनंदा सिंह