उस बस्ती की औरतें हैं या
ये निशाचरों की है दुनिया ,
वे निकलती हैं रात को
दिन का उजाला लेकर
पाप क्या और पुण्य क्या
वहां कोई तोल नहीं सकता
ज़हर पीने वाली बना दी गईं पापी
और हाथ झाड़ खड़ा होता है पुण्यात्मा
बीवी बच्चों के सामने देता है
ईश्वर की दुहाई
...... हकीकत इतनी सी है कि
फिर कितने धर्माचार्य हो जायेंगे-
बेरोजगार ....
यदि बता दे उनके भक्तों को कोई
कि रहती हैं अब भी
धरती पर नीलकंठ की भौतिक देहें
जो पुण्यात्माओं की दैहिक तृप्ति के लिए
पी जाती हैं गरल हंसते हंसते
उस बस्ती की औरतें भी तो नीलकंठ ही हैं ?
उन गरलगर्भाओं के तप को
बस्ती के नाम ने डस लिया
तभी तो रात को सजती हैं संवरती हैं ...
जागती हैं पुण्यात्माओं का गरल पीने को ।
- अलकनंदा सिंह