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Sunday, 22 June 2014

डिसेक्‍शन

आदतों के अंधेरे में
आदमी इस तरह काट रहा है जीवन
ज्‍यों...-ज्‍यों चलता है लगता है कि
वह कोई स्‍लीपवॉकर्स का बिंब हो
सोये हुये चल रहा हो...
ये बिंब अहसास ही नहीं होने देते
कि हम क्‍या कर रहे हैं
सही अौर  गलत के बीच,फिर भी
सत्‍य की आग सुलगती - चटकती रहती है
और लेने को बाध्‍य करती है
कई असंभवकारी निर्णय ऐसे...
मनसा वाचा कर्मणा तीनों का ही डिसेक्‍शन
विच्‍छेदन अब जरूरी है इनका
ताकि जमा हुई घुटन एक लक्ष्‍य दिखा सके
अंधेरों को कुहासे भरी ताप का दर्पण चाहिए
सचमुच आदमी को, हमको, अपने
अंदर भी तो झांकना चाहिए
इस अंधयात्रा का कोई पड़ाव तो होगा
जो बतायेगा कि किस माइलस्‍टोन
पर रुकना होगा इस आदमी को...
-अलकनंदा सिंह