और प्रेम बन गये तुम....सखा
और कृष्ण हो गये तुम...सखा
वो सांवली रंगत के साये में
आंखों के लाल डोरे एकदम सुर्ख
हे कृष्ण...तुम ऐसे ही क्यों हो
अपने प्रेम की भांति अनूठे,
जल रही भीतर जो तुम्हारे,
अगन है या श्रद्धा मेरी
प्रेम है या छलना तेरी
वो जो राग भी है रंग भी,
वो जो द्वेष भी है कपट भी ,
सब ने कहा वो राधा है...
संभव है ऐसा ही हो भी...
'राधा' बनते जाने की-
अग्नि के ताप में ही तो...
ताप से सुर्ख होते गये और फिर
इस तरह कृष्ण बनते गये तुम
भस्म होते रहे और प्रेम बन गये तुम
- अलकनंदा सिंह
और कृष्ण हो गये तुम...सखा
वो सांवली रंगत के साये में
आंखों के लाल डोरे एकदम सुर्ख
हे कृष्ण...तुम ऐसे ही क्यों हो
अपने प्रेम की भांति अनूठे,
जल रही भीतर जो तुम्हारे,
अगन है या श्रद्धा मेरी
प्रेम है या छलना तेरी
वो जो राग भी है रंग भी,
वो जो द्वेष भी है कपट भी ,
सब ने कहा वो राधा है...
संभव है ऐसा ही हो भी...
'राधा' बनते जाने की-
अग्नि के ताप में ही तो...
ताप से सुर्ख होते गये और फिर
इस तरह कृष्ण बनते गये तुम
भस्म होते रहे और प्रेम बन गये तुम
- अलकनंदा सिंह