मेरे घर के वातायन में
सूरज नहीं, आशायें उगती हैं
जीवन की हथेली पर
जो हर पल नया राग बुनती हैं
समय और लक्ष्य के बीच
चल रहा है द्वंद नया सा
देखें अब किसकी शक्ति
अपने अपने संधानों को
ठीक ठीक गुनती है
पग-पग.. पल-पल..
कल-कल.. चल कर
किरणें सूरज की, मेरे घर-
को नदी बनाकर, देखो-
कभी डूबती- उतराती सी
यूं अविरल होकर बहती हैं
नया राग है नई तरंगें
नये सुरों में जीवन का
पथ भी है नया नया सा
फिर.......
प्राचीन अनुबंधों से कह दो
देखें किसी और प्रभात को
सूरज तो अब बस मेरा है
मेरे ही वातायन में कैद
- अलकनंदा सिंह
सूरज नहीं, आशायें उगती हैं
जीवन की हथेली पर
जो हर पल नया राग बुनती हैं
समय और लक्ष्य के बीच
चल रहा है द्वंद नया सा
देखें अब किसकी शक्ति
अपने अपने संधानों को
ठीक ठीक गुनती है
पग-पग.. पल-पल..
कल-कल.. चल कर
किरणें सूरज की, मेरे घर-
को नदी बनाकर, देखो-
कभी डूबती- उतराती सी
यूं अविरल होकर बहती हैं
नया राग है नई तरंगें
नये सुरों में जीवन का
पथ भी है नया नया सा
फिर.......
प्राचीन अनुबंधों से कह दो
देखें किसी और प्रभात को
सूरज तो अब बस मेरा है
मेरे ही वातायन में कैद
- अलकनंदा सिंह