कोई आवाज सुनाई देती है मेरे आइने को
दिख रहा जो अक्स मुझसे वो बेगाना क्यों है,
रूह से निकल बर्फ होते जा रहे वज़ूद का
उसकी आवाज़ से रिश्ता पुराना क्यों है,
थामी है उसकी याद किसी हिज़्र की तरह
हथेलियों में वक्त इतना सहमा सा क्यों है,
थरथराते कदम और उखड़ते हुये लम्हों ने
शिकवों के गठ्ठर को कांधे पै ढोया क्यों है,
थरथराती हुई सांस और धड़कन के सफ़र को
मेरी मुट्ठी में बंद करके वो रोया क्यों है,
गिरते एतबार को थामने की कोशिश्ा में
किरणों के रेले से वो मुझे बहलाता क्यों है,
अब मैंने बुन लिया ऐसे ख्वाब का मंज़र
बीती तमाम उम्र का वो वास्ता देता क्यों है
-अलकनंदा सिंह
दिख रहा जो अक्स मुझसे वो बेगाना क्यों है,
रूह से निकल बर्फ होते जा रहे वज़ूद का
उसकी आवाज़ से रिश्ता पुराना क्यों है,
थामी है उसकी याद किसी हिज़्र की तरह
हथेलियों में वक्त इतना सहमा सा क्यों है,
थरथराते कदम और उखड़ते हुये लम्हों ने
शिकवों के गठ्ठर को कांधे पै ढोया क्यों है,
थरथराती हुई सांस और धड़कन के सफ़र को
मेरी मुट्ठी में बंद करके वो रोया क्यों है,
गिरते एतबार को थामने की कोशिश्ा में
किरणों के रेले से वो मुझे बहलाता क्यों है,
अब मैंने बुन लिया ऐसे ख्वाब का मंज़र
बीती तमाम उम्र का वो वास्ता देता क्यों है
-अलकनंदा सिंह